नौ साल के संघर्ष के बाद जोशी को न्याय मिला
सेवानिवृत्ति के बाद डीएफएससी बने
शिमला, 5 अक्टूबर, 2019
आखिरकार, मदन लाल जोशी को सेवानिवृत्ति के नौ साल के संघर्ष के बाद न्याय मिला और पदोन्नति मिली जबकि उनकी कोई गलती नहीं थी. उनके संघर्ष की कहानी उन सभी लोगों के लिए आंखें खोलने वाली है जो अन्याय और बाधाओं के विरूद्ध लड़ने में सक्षम नहीं हैं.
वास्तव में, श्री जोशी को 2010 में सेवानिवृत्ति से तीन दिन पहले, जिला खाद्य एवं आपूर्ति अधिकारी से खाद्य नागरिक आपूर्ति और उपभोक्ता मामलों के जिला नियंत्रक के पद पर पदोन्नति के दौरान नजरअंदाज कर दिया गया था. पदोन्नति के दौरान एडहॉक कर्मचारियों पर लगने वाले नियम को उनपर लागू करके उन्हें गलत तरीके से नजरअंदाज किया गया था. वास्तविकता यह थी कि वह नियमित आधार पर एफएसओ के रूप में काम कर रहे थे और उनपर गलत नियम लागू किया गया था.
विभाग ने उनके आवेदन को ठुकरा दिया, तो उन्होंने 2010 में उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और 24 अगस्त, 2011 को एकल पीठ में केस हार गए. खंड पीठ में उनकी अपील भी 29 अप्रैल, 2013 को खरिज कर दी गई. तब उन्हें भारत के सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ा, जहाँ उन्हें इस आधार पर अपनी अपील वापस लेनी पड़ी कि वह नियम को चुनौती देंगे और सर्वोच्च न्यायालय ने उन्हें 21 अक्टूबर, 2013 को ऐसा करने की अनुमति दी और उन्हें अपील वापिस लेने की अनुमति दे दी.
इसके बाद, श्री जोशी ने पदोन्नति में उनकी अनदेखी के लिए 2 जनवरी 2014 को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दी गई छूट के अनुसार उच्च न्यायालय में मामला दायर किया, जिसे डिवीजन बेंच ने सुना और तर्कों को सुनने के बाद केस को सुनवाई के लिए स्वीकृत कर लिया. इसी बीच, एचपी स्टेट एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल (एचपीएसएटी) का 2015 में पुनगर्ठन किया गया और इस केस को स्थानांतरित कर दिया गया. उन्हें एचपीएसएटी में चार साल से अधिक समय तक अंतिम न्याय का इंतजार करना पड़ा। हालांकि, विभाग एवं राज्य लोक सेवा आयोग, ट्रिब्यूनल के अंतरिम फैसले को कई बार टालते रहे. और कार्मिक और कानून विभागों से सलाह भी लेते रहे, पर उन दोनों विभागों की सलाह को नहीं माना गया.
हिम्मत नहीं हारते हुए, श्री जोशी को मई 2017 में उन्हें पदोन्नति देने के लिए एचपीएसएटी के आदेशों को लागू न करने के लिए अदालत में अवमानना का मामला दायर करना पड़ा. अवमानना मामले में अपने अंतरिम आदेशों में ट्रिब्यूनल के अध्यक्ष ने 30 अप्रैल, 2019 को पदोन्नति देने के स्पष्ट आदेश दिए. हालांकि, इस प्रक्रिया के दौरान, एचपीएसएटी को भंग कर दिया गया था, और श्री जोशी को फिर से उच्च न्यायालय में मामला दायर करना पड़ा था. मामले के तथ्यों का उल्लेख करते हुए, जिसे सुनवाई के लिए अनुमति दी गई थी.